करता मैं दर्दमंद तबीबों से क्या रुजूअ
जिस ने दिया था दर्द बड़ा वो हकीम था
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Parveen Shakir
Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(929) Peoples Rate This
कौन सी जा है जहाँ जल्वा-ए-माशूक़ नहीं
अल्लाह-रे सादगी नहीं इतनी उन्हें ख़बर
जो चाहिए सो माँगिये अल्लाह से 'अमीर'
अच्छे ईसा हो मरीज़ों का ख़याल अच्छा है
या-रब शब-ए-विसाल ये कैसा गजर बजा
तीर पर तीर लगाओ तुम्हें डर किस का है
बोसा लिया जो उस लब-ए-शीरीं का मर गए
शाख़ों से बर्ग-ए-गुल नहीं झड़ते हैं बाग़ में
बात करने में तो जाती है मुलाक़ात की रात
मिसी छूटी हुई सूखे हुए होंट
अभी कमसिन हैं ज़िदें भी हैं निराली उन की
मौक़ूफ़ जुर्म ही पे करम का ज़ुहूर था