कौन सी जा है जहाँ जल्वा-ए-माशूक़ नहीं
शौक़-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर
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अल्लाह-री नज़ाकत-ए-जानाँ कि शेर में
दिल जुदा माल जुदा जान जुदा लेते हैं
हो गया बंद दर-ए-मै-कदा क्या क़हर हुआ
गर्द उड़ी आशिक़ की तुर्बत से तो झुँझला कर कहा
मैं रो के आह करूँगा जहाँ रहे न रहे
हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं
क़रीब है यारो रोज़-ए-महशर छुपेगा कुश्तों का ख़ून क्यूँकर
पिला साक़िया अर्ग़वानी शराब
क़िबला-ए-दिल काबा-ए-जाँ और है
इन शोख़ हसीनों पे जो माइल नहीं होता
रोज़-ओ-शब याँ एक सी है रौशनी
लाए कहाँ से उस रुख़-ए-रौशन की आब-ओ-ताब