इन शोख़ हसीनों पे जो माइल नहीं होता
कुछ और बला होती है वो दिल नहीं होता
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गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर'
शब-ए-विसाल बहुत कम है आसमाँ से कहो
लाए कहाँ से उस रुख़-ए-रौशन की आब-ओ-ताब
सब हसीं हैं ज़ाहिदों को ना-पसंद
शमशीर है सिनाँ है किसे दूँ किसे न दूँ
गर्द उड़ी आशिक़ की तुर्बत से तो झुँझला कर कहा
किस ढिटाई से वो दिल छीन के कहते हैं 'अमीर'
ख़ून-ए-नाहक़ कहीं छुपता है छुपाए से 'अमीर'
दिल को तर्ज़-ए-निगह-ए-यार जताते आए
रोज़-ओ-शब याँ एक सी है रौशनी
हाथ रख कर मेरे सीने पे जिगर थाम लिया
समझता हूँ सबब काफ़िर तिरे आँसू निकलने का