हम जो पहुँचे तो लब-ए-गोर से आई ये सदा
आइए आइए हज़रत बहुत आज़ाद रहे
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ज़ब्त देखो उधर निगाह न की
जब से बुलबुल तू ने दो तिनके लिए
शैख़ कहता है बरहमन को बरहमन उस को सख़्त
मुश्किल बहुत पड़ेगी बराबर की चोट है
नावक-ए-नाज़ से मुश्किल है बचाना दिल का
न वाइज़ हज्व कर एक दिन दुनिया से जाना है
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
बोसा लिया जो उस लब-ए-शीरीं का मर गए
नब्ज़-ए-बीमार जो ऐ रश्क-ए-मसीहा देखी
मिला कर ख़ाक में भी हाए शर्म उन की नहीं जाती
पहले तो मुझे कहा निकालो
ये कहूँगा ये कहूँगा ये अभी कहते हो