नब्ज़-ए-बीमार जो ऐ रश्क-ए-मसीहा देखी
आज क्या आप ने जाती हुई दुनिया देखी
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तूल-ए-शब-ए-फ़िराक़ का क़िस्सा न पूछिए
पहले तो मुझे कहा निकालो
गुज़र को है बहुत औक़ात थोड़ी
तीर पर तीर लगाओ तुम्हें डर किस का है
ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर'
मिरे बस में या तो या-रब वो सितम-शिआर होता
है ख़मोशी ज़ुल्म-ए-चर्ख़-ए-देव-पैकर का जवाब
ख़ुशामद ऐ दिल-ए-बेताब इस तस्वीर की कब तक
तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है
कुछ ख़ार ही नहीं मिरे दामन के यार हैं
तीर खाने की हवस है तो जिगर पैदा कर