हुए नामवर बे-निशाँ कैसे कैसे
ज़मीं खा गई आसमाँ कैसे कैसे
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छेड़ देखो मिरी मय्यत पे जो आए तो कहा
तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है
अल्लाह-री नज़ाकत-ए-जानाँ कि शेर में
हुआ जो पैवंद मैं ज़मीं का तो दिल हुआ शाद मुझ हज़ीं का
हैं न ज़िंदों में न मुर्दों में कमर के आशिक़
देख ले बुलबुल ओ परवाना की बेताबी को
दिल जुदा माल जुदा जान जुदा लेते हैं
सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
रहा ख़्वाब में उन से शब भर विसाल
फ़ुर्क़त में मुँह लपेटे मैं इस तरह पड़ा हूँ
दिल जो सीने में ज़ार सा है कुछ
है वसिय्यत कि कफ़न मुझ को इसी का देना