जो चाहिए सो माँगिये अल्लाह से 'अमीर'
उस दर पे आबरू नहीं जाती सवाल से
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मानी हैं मैं ने सैकड़ों बातें तमाम उम्र
फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा
हैं न ज़िंदों में न मुर्दों में कमर के आशिक़
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
आए बुत-ख़ाने से काबे को तो क्या भर पाया
वादा-ए-वस्ल और वो कुछ बात है
चाँद सा चेहरा नूर की चितवन माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो
ऐ ज़ब्त देख इश्क़ की उन को ख़बर न हो
तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है
बाद मरने के भी छोड़ी न रिफ़ाक़त मेरी
रहा ख़्वाब में उन से शब भर विसाल