बाद मरने के भी छोड़ी न रिफ़ाक़त मेरी
मेरी तुर्बत से लगी बैठी है हसरत मेरी
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नब्ज़-ए-बीमार जो ऐ रश्क-ए-मसीहा देखी
मुद्दत में शाम-ए-वस्ल हुई है मुझे नसीब
हाथ रख कर मेरे सीने पे जिगर थाम लिया
गले में हाथ थे शब उस परी से राहें थीं
क़िबला-ए-दिल काबा-ए-जाँ और है
वही रह जाते हैं ज़बानों पर
कुछ ख़ार ही नहीं मिरे दामन के यार हैं
ये भी इक बात है अदावत की
मस्जिद में बुलाते हैं हमें ज़ाहिद-ए-ना-फ़हम
चाँद सा चेहरा नूर की चितवन माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है
पहलू में मेरे दिल को न ऐ दर्द कर तलाश