वही रह जाते हैं ज़बानों पर
शेर जो इंतिख़ाब होते हैं
Parveen Shakir
Anwar Masood
Habib Jalib
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Gulzar
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(966) Peoples Rate This
वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर
मौक़ूफ़ जुर्म ही पे करम का ज़ुहूर था
बाग़बाँ कलियाँ हों हल्के रंग की
फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा
समझता हूँ सबब काफ़िर तिरे आँसू निकलने का
ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर'
मिसी छूटी हुई सूखे हुए होंट
जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा
तीर पर तीर लगाओ तुम्हें डर किस का है
हैं न ज़िंदों में न मुर्दों में कमर के आशिक़
हाथ रख कर मेरे सीने पे जिगर थाम लिया
तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है