वाए क़िस्मत वो भी कहते हैं बुरा
हम बुरे सब से हुए जिन के लिए
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उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं
बातें नासेह की सुनीं यार के नज़्ज़ारे किए
बाक़ी न दिल में कोई भी या रब हवस रहे
सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
या-रब शब-ए-विसाल ये कैसा गजर बजा
उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो
मिरा ख़त उस ने पढ़ा पढ़ के नामा-बर से कहा
अभी आए अभी जाते हो जल्दी क्या है दम ले लो
कहा जो मैं ने कि यूसुफ़ को ये हिजाब न था
हाथ रख कर मेरे सीने पे जिगर थाम लिया
मिला कर ख़ाक में भी हाए शर्म उन की नहीं जाती