मिसी छूटी हुई सूखे हुए होंट
ये सूरत और आप आते हैं घर से
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अमीर लाख इधर से उधर ज़माना हुआ
मैं रो के आह करूँगा जहाँ रहे न रहे
माँग लूँ तुझ से तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए
वस्ल हो जाए यहीं हश्र में क्या रक्खा है
सब हसीं हैं ज़ाहिदों को ना-पसंद
हुआ जो पैवंद मैं ज़मीं का तो दिल हुआ शाद मुझ हज़ीं का
फूलों में अगर है बू तुम्हारी
हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी
आँखें दिखलाते हो जोबन तो दिखाओ साहब
ये कहूँगा ये कहूँगा ये अभी कहते हो
गिरह से कुछ नहीं जाता है पी भी ले ज़ाहिद
क्या रोके क़ज़ा के वार तावीज़