गिरह से कुछ नहीं जाता है पी भी ले ज़ाहिद
मिले जो मुफ़्त तो क़ाज़ी को भी हराम नहीं
Jaun Eliya
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Parveen Shakir
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Ahmad Faraz
Rahat Indori
Habib Jalib
Gulzar
Javed Akhtar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
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बाक़ी न दिल में कोई भी या रब हवस रहे
तीर खाने की हवस है तो जिगर पैदा कर
तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है
पूछा न जाएगा जो वतन से निकल गया
अच्छे ईसा हो मरीज़ों का ख़याल अच्छा है
हिलाल ओ बद्र दोनों में 'अमीर' उन की तजल्ली है
रोज़-ओ-शब याँ एक सी है रौशनी
देख ले बुलबुल ओ परवाना की बेताबी को
हम जो मस्त-ए-शराब होते हैं
ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर'
बोसा लिया जो उस लब-ए-शीरीं का मर गए
गुज़र को है बहुत औक़ात थोड़ी