है जवानी ख़ुद जवानी का सिंगार
सादगी गहना है इस सिन के लिए
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फ़ुर्क़त में मुँह लपेटे मैं इस तरह पड़ा हूँ
कुछ ख़ार ही नहीं मिरे दामन के यार हैं
कबाब-ए-सीख़ हैं हम करवटें हर-सू बदलते हैं
वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर
ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर'
हैं न ज़िंदों में न मुर्दों में कमर के आशिक़
हुआ जो पैवंद मैं ज़मीं का तो दिल हुआ शाद मुझ हज़ीं का
हुए नामवर बे-निशाँ कैसे कैसे
पिला साक़िया अर्ग़वानी शराब
समझता हूँ सबब काफ़िर तिरे आँसू निकलने का
फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा
तेरी मस्जिद में वाइज़ ख़ास हैं औक़ात रहमत के