पूछा न जाएगा जो वतन से निकल गया
बे-कार है जो दाँत दहन से निकल गया
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ज़ब्त देखो उधर निगाह न की
वाए क़िस्मत वो भी कहते हैं बुरा
शाख़ों से बर्ग-ए-गुल नहीं झड़ते हैं बाग़ में
न वाइज़ हज्व कर एक दिन दुनिया से जाना है
हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी
हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं
लाए कहाँ से उस रुख़-ए-रौशन की आब-ओ-ताब
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
जिस ग़ुंचा-लब को छेड़ दिया ख़ंदा-ज़न हुआ
दिल जुदा माल जुदा जान जुदा लेते हैं
हम जो मस्त-ए-शराब होते हैं
क्या रोके क़ज़ा के वार तावीज़