बरहमन दैर से काबे से फिर आए हाजी
तेरे दर से न सरकना था न सरके आशिक़
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मिसी छूटी हुई सूखे हुए होंट
अमीर लाख इधर से उधर ज़माना हुआ
तूल-ए-शब-ए-फ़िराक़ का क़िस्सा न पूछिए
जो चाहिए सो माँगिये अल्लाह से 'अमीर'
दिल को तर्ज़-ए-निगह-ए-यार जताते आए
वस्ल में ख़ाली हुई ग़ैर से महफ़िल तो क्या
वस्ल की शब भी ख़फ़ा वो बुत-ए-मग़रूर रहा
हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं
गिरह से कुछ नहीं जाता है पी भी ले ज़ाहिद
तीर खाने की हवस है तो जिगर पैदा कर
माँग लूँ तुझ से तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए
आँखें दिखलाते हो जोबन तो दिखाओ साहब