पानी Poetry (page 24)

एक ख़्वाब

गुलज़ार

डाइरी

गुलज़ार

बारिश होती है तो पानी को भी लग जाते हैं पाँव

गुलज़ार

आदमी बुलबुला है

गुलज़ार

ज़िक्र होता है जहाँ भी मिरे अफ़्साने का

गुलज़ार

तुझ को देखा है जो दरिया ने इधर आते हुए

गुलज़ार

पेड़ के पत्तों में हलचल है ख़बर-दार से हैं

गुलज़ार

मैं नहीं हूँ मगर

गुलनाज़ कौसर

नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

शेर जब खुलता है खुलते हैं मआनी क्या क्या

गोविन्द गुलशन

एक नज़्म

गोपाल मित्तल

आँखों में नए रंग सजाने नहीं उतरे

गिरिजा व्यास

राह से मुझ को हटा कर ले गया

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मिरी गिरफ़्त में है ताएर-ए-ख़याल मिरा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

बढ़ा जब उस की तवज्जोह का सिलसिला कुछ और

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

हर साल बहार से पहले मैं पानी पर फूल बनाता हूँ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ऊँचे दर्जे का सैलाब

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ख़ामोश थे तुम और बोलता था बस एक सितारा आँखों में

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

अक्स की सूरत दिखा कर आप का सानी मुझे

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

आफ़ाक़ में फैले हुए मंज़र से निकल कर

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

नहीं अब रोक पाएगी फ़सील-ए-शहर पानी को

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरे नज्म-ए-ख़्वाब के रू-ब-रू कोई शय नहीं मिरे ढंग की

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मैं अपने सूरज के साथ ज़िंदा रहूँगा तो ये ख़बर मिलेगी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कोई जब छीन लेता है मता-ए-सब्र मिट्टी से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

हुआ रौशन दम-ए-ख़ुर्शीद से फिर रंग पानी का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़ की ओट में रुका है जो इक हयूला सा यासमीं का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़ की ओट में है मेहराब पर सितारा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अजीब बात हमारा ही ख़ूँ हुआ पानी

ग़ज़नफ़र

सामान-ए-ऐश सारा हमें यूँ तू दे गया

ग़ज़नफ़र

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