पानी Poetry (page 3)

कब तलक ये शाला-ए-बे-रंग मंज़र देखिए

ज़ेब ग़ौरी

झुके हुए पेड़ों के तनों पर छाप है चंचल धारे की

ज़ेब ग़ौरी

हवा में उड़ता कोई ख़ंजर जाता है

ज़ेब ग़ौरी

अक्स-ए-फ़लक पर आईना है रौशन आब ज़ख़ीरों का

ज़ेब ग़ौरी

किसी तरफ़ जाने का रस्ता कहीं नहीं

ज़मीर अज़हर

उम्र गुज़री है कामरानी से

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

उतरें गहराई में तब ख़ाक से पानी आए

ज़करिय़ा शाज़

सिवा है हद से अब एहसास की गिरानी भी

ज़ाहिदा ज़ैदी

क़तरा-ए-आब को कब तक मिरी धरती तरसे

ज़ाहिदा ज़ैदी

इन्फ़ॉर्मेशन टेक्नोलॉजी

ज़ाहिद मसूद

ज़वाल का दिन

ज़ाहिद डार

नज़्म

ज़ाहिद डार

एक दुआ

ज़ाहिद डार

पस्पाई

ज़हीर सिद्दीक़ी

सतही लोगों में गहराई होती है

ज़हीर रहमती

ज़र्द गुलाबों की ख़ातिर भी रोता है

ज़हीर रहमती

यूँ ही हम दर्द अपना खो रहे हैं

ज़हीर रहमती

पानी पानी रहते हैं

ज़हीर रहमती

इशारे मुद्दतों से कर रहा है

ज़हीर रहमती

मैं हूँ वहशत में गुम मैं तेरी दुनिया में नहीं रहता

ज़हीर काश्मीरी

हाथ से हैहात क्या जाता रहा

ज़हीर देहलवी

जो ज़ेहन ओ दिल में इकट्ठा था आस का पानी

ज़हीर अहमद ज़हीर

इक शजर ऐसा मोहब्बत का लगाया जाए

ज़फर ज़ैदी

ज़हर-ए-साअत ही पिएँ जिस्म तह-ए-ख़ाक तो हो

ज़फ़र सिद्दीक़ी

ये अमल रेत को पानी नहीं बनने देता

ज़फ़र सहबाई

जब अधूरे चाँद की परछाईं पानी पर पड़ी

ज़फ़र सहबाई

ये क्या तहरीर पागल लिख रहा है

ज़फ़र सहबाई

शब के ग़म दिन के अज़ाबों से अलग रखता हूँ

ज़फ़र सहबाई

सब्ज़े से सब दश्त भरे हैं ताल भरे हैं पानी से

ज़फ़र सहबाई

जब अधूरे चाँद की परछाईं पानी पर पड़ी

ज़फ़र सहबाई

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