पूर्व Poetry (page 9)

एक परी आकाश से उतरी

फ़ारूक़ नाज़की

खड़ी है रात अंधेरों का अज़दहाम लगाए

फ़रहत एहसास

ये क्या हुआ कि सभी अब तो दाग़ जलने लगे

फ़रहान सालिम

ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तिरे दीवाने का

फ़ानी बदायुनी

जिस परी पर मर मिटे थे वो परी-ज़ादी न थी

फ़ैज़ान हाशमी

सामने होते थे पहले जिस क़दर होते थे हम

फ़ैज़ान हाशमी

शीशों का मसीहा कोई नहीं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रक़ीब से!

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मैं तेरे सपने देखूँ

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रंग पैराहन का ख़ुशबू ज़ुल्फ़ लहराने का नाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मुझ पास कभी वो क़द-ए-शमशाद न आया

फ़ाएज़ देहलवी

जागीर अगर बहुत न मिली हम कूँ ग़म नहीं

फ़ाएज़ देहलवी

जान-ए-अय्याम-ए-दिलबरी है याद

फ़ाएज़ देहलवी

आज भड़की रग-ए-वहशत तिरे दीवानों की

एहसान दानिश

उम्मीद पर हमारी ये दुनिया खरी नहीं

डॉक्टर आज़म

ज़मीन अपने ही मेहवर से हट रही होगी

दिलावर अली आज़र

वो बहते दरिया की बे-करानी से डर रहा था

दिलावर अली आज़र

जब परी-रू हिजाब करते हैं

दाऊद औरंगाबादी

हुस्न इस शम्अ-रू का है गुल-रंग

दाऊद औरंगाबादी

पानी के शीशों में रक्खी जाती है

दानियाल तरीर

ख़्वाब-कारी वही कमख़्वाब वही है कि नहीं

दानियाल तरीर

ज़ाहिद न कह बुरी कि ये मस्ताने आदमी हैं

दाग़ देहलवी

ये बात बात में क्या नाज़ुकी निकलती है

दाग़ देहलवी

क़रीने से अजब आरास्ता क़ातिल की महफ़िल है

दाग़ देहलवी

देख कर जौबन तिरा किस किस को हैरानी हुई

दाग़ देहलवी

बुतान-ए-माहवश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैं

दाग़ देहलवी

चेहरे पे नूर-ए-सुब्ह सियह गेसुओं में रात

दाएम ग़व्वासी

ग़ज़ब है सुर्मा दे कर आज वो बाहर निकलते हैं

भारतेंदु हरिश्चंद्र

बाल बिखेरे आज परी तुर्बत पर मेरे आएगी

भारतेंदु हरिश्चंद्र

मुझ को न दिल पसंद न वो बेवफ़ा पसंद

बेख़ुद देहलवी

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