पूर्व Poetry (page 7)

बाग़ इक दिन का है सो रात नहीं आने की

इलियास बाबर आवान

रौशनी की डोर थामे ज़िंदगी तक आ गए

इफ़्तिख़ार फलक काज़मी

यूँही वाबस्तगी नहीं होती

इब्न-ए-सफ़ी

पिछले-पहर के सन्नाटे में

इब्न-ए-इंशा

तुम भी निगाह में हो अदू भी नज़र में है

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

ज़िक्र-ए-जानाँ कर जो तुझ से हो सके

हातिम अली मेहर

सर झुकाता नहीं कभी शीशा

हातिम अली मेहर

कोई ले कर ख़बर नहीं आता

हातिम अली मेहर

बदन-ए-यार की बू-बास उड़ा लाए हवा

हातिम अली मेहर

ख़ुशा वो बाग़ महकती हो जिस में बू तेरी

हसरत शरवानी

हाइल थी बीच में जो रज़ाई तमाम शब

हसरत मोहानी

खेलें आपस में परी-चेहरा जहाँ ज़ुल्फ़ें खोल

हसरत अज़ीमाबादी

रखा पा जहाँ में नगारा ज़मीं पर

हसरत अज़ीमाबादी

न छुटा हाथ से यक लहज़ा गरेबाँ मेरा

हसरत अज़ीमाबादी

ज़र्द मौसम में भी इक शाख़ हरी रहती है

हाशिम रज़ा जलालपुरी

ना-उमीदी ने यूँ सताया था

हसन नईम

कोई ग़मगीं कोई ख़ुश हो कर सदा देता रहा

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

रात लम्बी भी है और तारीक भी शब-गुज़ारी का सामाँ करो दोस्तो

हसन अख्तर जलील

हम ढूँडते फिरते रहे तस्वीर हवा की

हमदम कशमीरी

सूरत से इस की बेहतर सूरत नहीं है कोई

हैदर अली आतिश

शोहरा-ए-आफ़ाक़ मुझ सा कौन सा दीवाना है

हैदर अली आतिश

शब-ए-वस्ल थी चाँदनी का समाँ था

हैदर अली आतिश

ना-फ़हमी अपनी पर्दा है दीदार के लिए

हैदर अली आतिश

हुस्न-ए-परी इक जल्वा-ए-मस्ताना है उस का

हैदर अली आतिश

हुस्न किस रोज़ हम से साफ़ हुआ

हैदर अली आतिश

है जब से दस्त-ए-यार में साग़र शराब का

हैदर अली आतिश

ग़म नहीं गो ऐ फ़लक रुत्बा है मुझ को ख़ार का

हैदर अली आतिश

दीवानगी ने क्या क्या आलम दिखा दिए हैं

हैदर अली आतिश

बुलबुल को ख़ार ख़ार-ए-दबिस्ताँ है इन दिनों

हैदर अली आतिश

बुलबुल गुलों से देख के तुझ को बिगड़ गया

हैदर अली आतिश

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