पहलू Poetry (page 13)
वो देखते जाते हैं कनखियों से इधर भी
बेख़ुद देहलवी
उठे तिरी महफ़िल से तो किस काम के उठ्ठे
बेख़ुद देहलवी
दोनों ही की जानिब से हो गर अहद-ए-वफ़ा हो
बेख़ुद देहलवी
बेवफ़ा कहने से क्या वो बेवफ़ा हो जाएगा
बेख़ुद देहलवी
शिकवा सुन कर जो मिज़ाज-ए-बुत-ए-बद-ख़ू बदला
बेखुद बदायुनी
शिकवा सुन कर जो मिज़ाज-ए-बुत-ए-बद-ख़ू बदला
बेखुद बदायुनी
में ग़श में हूँ मुझे इतना नहीं होश
बेदम शाह वारसी
यार पहलू में निहाँ था मुझे मा'लूम न था
बयान मेरठी
सर-ए-शोरीदा पा-ए-दश्त-ए-पैमा शाम-ए-हिज्राँ था
बयान मेरठी
आएँगे गर उन्हें ग़ैरत होगी
बयान मेरठी
उन का बर्बाद-ए-करम कहने के क़ाबिल हो गया
बासित भोपाली
जैसे भी ये दुनिया है जो कुछ भी ज़माना है
बासित भोपाली
दिल जो उम्मीद-वार होता है
बशीरुद्दीन राज़
मुझे कहना है
बशर नवाज़
रब्त हर बज़्म से टूटे तिरी महफ़िल के सिवा
बशर नवाज़
जब छाई घटा लहराई धनक इक हुस्न-ए-मुकम्मल याद आया
बशर नवाज़
एतिबार-ए-नज़र करें कैसे
बाक़ी सिद्दीक़ी
छुप के नज़रों से इन आँखों की फ़रामोश की राह
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
मेरा जनम दिन
बाक़र मेहदी
दर्द उट्ठा था मिरे पहलू में
बक़ा बलूच
जाने क्या सोच के घर तक पहुँचा
बक़ा बलूच
चुटकियाँ लेती है गोयाई किसे आवाज़ दूँ
बलराज हयात
जब कि पहलू में हमारे बुत-ए-ख़ुद-काम न हो
ज़फ़र
अजीब हालत है जिस्म-ओ-जाँ की हज़ार पहलू बदल रहा हूँ
अज़्म शाकरी
अजीब हालत है जिस्म-ओ-जाँ की हज़ार पहलू बदल रहा हूँ
अज़्म शाकरी
आख़िर-ए-शब वो तेरी अंगड़ाई
अज़ीज़ वारसी
'नबील' इस इश्क़ में तुम जीत भी जाओ तो क्या होगा
अज़ीज़ नबील
न जाने कैसी महरूमी पस-ए-रफ़्तार चलती है
अज़ीज़ नबील
कुछ देर तो दुनिया मिरे पहलू में खड़ी थी
अज़ीज़ नबील
मोहतरम कह के मुझे उस ने पशेमान किया
अज़हर नवाज़
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