पहलू Poetry (page 12)

इश्क़ अपने मुजरिमों को पा-ब-जौलाँ ले चला

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दर्द आएगा दबे पाँव

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

भाई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

याद का फिर कोई दरवाज़ा खुला आख़िर-ए-शब

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

उसी ने चाँद के पहलू में इक चराग़ रखा

फ़हीम शनास काज़मी

आहिस्ता से गुज़रो

फ़हीम शनास काज़मी

बदन को ख़ाक किया और लहू को आब किया

फ़हीम शनास काज़मी

बदलते पहलू

एलिज़ाबेथ कुरियन मोना

ख़ुश्क दरिया पड़ा है ख़्वाहिश का

एजाज़ रहमानी

ग़म हमारा गुलाब हो जाए

दिनेश ठाकुर

ये भीगी रात ये ठंडा समाँ ये कैफ़-ए-बहार

दिल शाहजहाँपुरी

कोई सिवा-ए-बदन है न है वरा-ए-बदन

दानियाल तरीर

इलाही क्यूँ नहीं उठती क़यामत माजरा क्या है

दाग़ देहलवी

सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करना

दाग़ देहलवी

शब-ए-वस्ल भी लब पे आए गए हैं

दाग़ देहलवी

क़रीने से अजब आरास्ता क़ातिल की महफ़िल है

दाग़ देहलवी

भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं

दाग़ देहलवी

अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का

दाग़ देहलवी

ये मायूसी कहीं वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल न बन जाए

चराग़ हसन हसरत

इस तरह कर गया दिल को मिरे वीराँ कोई

चराग़ हसन हसरत

बे-ख़ुदी में है न वो पी कर सँभल जाने में है

चरख़ चिन्योटी

तंग आ गए हैं क्या करें इस ज़िंदगी से हम

बिस्मिल अज़ीमाबादी

किसी पहलू नहीं चैन आता है उश्शाक़ को तेरे

भारतेंदु हरिश्चंद्र

किसी पहलू नहीं आराम आता तेरे आशिक़ को

भारतेंदु हरिश्चंद्र

अभी तो आए हो जल्दी कहाँ है जाने की

भारतेंदु हरिश्चंद्र

उठा के नाज़ से दामन भला किधर को चले

भारतेंदु हरिश्चंद्र

ग़ज़ब है सुर्मा दे कर आज वो बाहर निकलते हैं

भारतेंदु हरिश्चंद्र

अजब जौबन है गुल पर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है

भारतेंदु हरिश्चंद्र

तकिया हटता नहीं पहलू से ये क्या है 'बेख़ुद'

बेख़ुद देहलवी

बात वो कहिए कि जिस बात के सौ पहलू हों

बेख़ुद देहलवी

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