पहलू Poetry (page 6)

न जान कर गुल-ए-बाज़ी बहुत उछाल के फेंक

शाद लखनवी

क्या कहूँ ग़ुंचा-ए-गुल नीम-दहाँ है कुछ और

शाद लखनवी

ख़ुदा ही उस चुप की दाद देगा कि तुर्बतें रौंदे डालते हैं

शाद लखनवी

हुई तो जा दिल में उस सनम की नमाज़ में सर झुका झुका कर

शाद लखनवी

दुखा दिल भी टुकड़े जिगर होते होते

शाद लखनवी

जफ़ा-शिआ'र भी हो कोई मेहरबाँ भी रहे

शाद बिलगवी

किस पे क़ाबू जो तुझी पे नहीं क़ाबू अपना

शाद अज़ीमाबादी

जिसे पाला था इक मुद्दत तक आग़ोश-ए-तमन्ना में

शाद अज़ीमाबादी

फूल और सितारा

शब्बीर शाहिद

रू भी अक्स-ए-रू भी मैं

शानुल हक़ हक़्क़ी

जब तक ग़म-ए-उल्फ़त का उंसुर न मिला होगा

सीमाब अकबराबादी

हिर्स-ओ-हवस के नाम ये दिन रात की तलब

सौरभ शेखर

दिल में तिरे जो कोई घर कर गया

मोहम्मद रफ़ी सौदा

बा'द मुद्दत के मिरे आँख से आँसू निकले

सरवर नेपाली

लहर-लहर आवारगियों के साथ रहा

सरवत हुसैन

सियाह रात के पहलू में जिस्म के अंदर

सरफ़राज़ ख़ालिद

सुर्ख़ गुलाब और बदर-ए-मुनीर

साक़ी फ़ारुक़ी

मय-कशी छोड़ दी तौहीन-ए-हुनर कर आया

सलमान अंसारी

हूँ पारसा तिरे पहलू में शब गुज़ार के भी

सलीम सिद्दीक़ी

हूँ पारसा तिरे पहलू में शब गुज़ार के भी

सलीम सिद्दीक़ी

शहरयारों ने दिखाईं मुझ को तस्वीरें बहुत

सलीम शहज़ाद

इन दर-ओ-दीवार की आँखों से पट्टी खोल कर

सलीम शाहिद

इक एक लफ़्ज़ में कई पहलू कहाँ से आए

सलीम फ़राज़

ज़िंदगी मौत के पहलू में भली लगती है

सलीम अहमद

वस्ल ओ फ़स्ल की हर मंज़िल में शामिल इक मजबूरी थी

सलीम अहमद

उम्र भर काविश-ए-इज़हार ने सोने न दिया

सलीम अहमद

सितम तू करता है लेकिन दुआ भी देता है

सज्जाद सय्यद

नुमायाँ और भी रुख़ तेरी बे-रुख़ी में रहे

सज्जाद बाक़र रिज़वी

दुनिया दुनिया सैर सफ़र थी शौक़ की राह तमाम हुई

सज्जाद बाक़र रिज़वी

बे-दिली वो है कि मरने की तमन्ना भी नहीं

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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