परेशां Poetry (page 14)

उस मह-जबीं से आज मुलाक़ात हो गई

अख़्तर शीरानी

उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है

अख़्तर शीरानी

उम्र भर की तल्ख़ बेदारी का सामाँ हो गईं

अख़्तर शीरानी

आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या

अख़्तर शीरानी

आओ बे-पर्दा तुम्हें जल्वा-ए-पिन्हाँ की क़सम

अख़्तर शीरानी

मिरी निगाह का पैग़ाम बे-सदा जो हुआ

अख़्तर होशियारपुरी

मिरी निगाह का पैग़ाम बे-सदा जो हुआ

अख़्तर होशियारपुरी

अपने क़दमों ही की आवाज़ से चौंका होता

अख़्तर होशियारपुरी

ज़िंदगी होगी मिरी ऐ ग़म-ए-दौराँ इक रोज़

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

मैं परेशाँ हूँ मिलें चंद निवाले कैसे

अख़लाक़ बन्दवी

हंगामा-ए-आफ़ात इधर भी है उधर भी

अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी

ख़ालिक़ और तख़्लीक़

अकबर हैदराबादी

ज़िद है उन्हें पूरा मिरा अरमाँ न करेंगे

अकबर इलाहाबादी

जो कल हैरान थे उन को परेशाँ कर के छोड़ूँगा

अजमल सिराज

जिस दिन से गया वो जान-ए-ग़ज़ल हर मिसरे की सूरत बिगड़ी

अजमल सिद्दीक़ी

इतराता गरेबाँ पर था बहुत, रह-ए-इश्क़ में कब का चाक हुआ

अजमल सिद्दीक़ी

ये ठीक है कि बहुत वहशतें भी ठीक नहीं

ऐतबार साजिद

मैं अल्बम के वरक़ जब भी उलटता हूँ

ऐन ताबिश

ज़रुरत-ए-इत्तिहाद

अहमक़ फफूँदवी

ख़िदमत-ए-वतन

अहमक़ फफूँदवी

यूँ ज़माने में मिरा जिस्म बिखर जाएगा

अहमद ज़फ़र

हैं शाख़ शाख़ परेशाँ तमाम घर मेरे

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

एजाज़ है ये तेरी परेशाँ-नज़री का

अहमद नदीम क़ासमी

रुख़्सत-ए-शब का समाँ पहले कभी देखा न था

अहमद मुश्ताक़

इक फूल मेरे पास था इक शम्अ' मेरे साथ थी

अहमद मुश्ताक़

चोरी से दो घड़ी जो नज़ारे हुए तो क्या

अहमद हुसैन माइल

अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ

अहमद फ़राज़

अब मैं हूँ और ख़्वाब-ए-परेशाँ है मेरे साथ

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

कर के असीर-ए-ग़म्ज़ा-ओ-नाज़-ओ-अदा मुझे

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

दिल था कि ग़म-ए-जाँ था

आग़ाज़ बरनी

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