परेशां Poetry (page 2)

ज़र्रा हरीफ़-ए-मेहर दरख़्शाँ है आज कल

वासिफ़ देहलवी

अदना सा बासी

वसीम बरेलवी

जमालियात

वामिक़ जौनपुरी

दिल परेशाँ है न जाने किस लिए

वामिक़ जौनपुरी

यार उठ गए दुनिया से अग़्यार की बारी है

वली उज़लत

गर मेरे लहू रोने का बारान बनेगा

वली उज़लत

दर्द जूँ शम्अ' मिले है शब-ए-हिज्राँ मुझ को

वली उज़लत

चाक चाक अपना गरेबाँ न हुआ था सो हुआ

वाजिद अली शाह अख़्तर

शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आज़ाद उस से हैं कि बयाबाँ ही क्यूँ न हो

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

मुद्दत हुई है मदह-ए-हसीनाँ किए हुए

वहीदुद्दीन सलीम

मुद्दत हुई है मदह-ए-हसीनाँ किए हुए

वहीदुद्दीन सलीम

लिपटी हुई फिरती है नसीम उन की क़बा से

वहीद अख़्तर

हवा-ए-शोख़ की आख़िर फ़ुसूँ कारी ये कैसी है

वली मदनी

ख़ुदा से वक़्त-ए-दुआ हम सवाल कर बैठे

तिलोकचंद महरूम

हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ

तारिक़ क़मर

हम जब्र-ए-मोहब्बत से गुरेज़ाँ नहीं होते

तालीफ़ हैदर

भूली-बिसरी रात

तख़्त सिंह

टूट कर अहद-ए-तमन्ना की तरह

ताबिश देहलवी

टूट कर अहद-ए-तमन्ना की तरह

ताबिश देहलवी

शौक़ के ख़्वाब-ए-परेशाँ की हैं तफ़्सीरें बहुत

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

दौर-ए-तूफ़ाँ में भी जी लेते हैं जीने वाले

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

आई बहार शोरिश-तिफ़लाँ को क्या हुआ

ताबाँ अब्दुल हई

याद-ए-अय्याम कि हम-रुतबा-ए-रिज़वाँ हम थे

तअशशुक़ लखनवी

तूफ़ाँ नहीं गुज़रे कि बयाबाँ नहीं गुज़रे

सय्यद ज़मीर जाफ़री

हम अगर दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते

सय्यद ज़मीर जाफ़री

अगर हम दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते

सय्यद ज़मीर जाफ़री

कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की मरे ज़िक्र पर झेंप जाती तो होगी

सय्यद शकील दस्नवी

हम से पहले तो कोई यूँ न फिरा आवारा

सय्यद मुनीर

कराची का ट्रैफ़िक

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

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