परेशां Poetry (page 15)

जो सामना भी कभी यार-ए-ख़ूब-रू से हुआ

आग़ा हज्जू शरफ़

दरपेश अजल है गंज-ए-शहीदाँ ख़रिदिए

आग़ा हज्जू शरफ़

ज़िंदगी इतनी परेशाँ है ये सोचा भी न था

अफ़ज़ल मिनहास

कर्ब के शहर से निकले तो ये मंज़र देखा

अफ़ज़ल मिनहास

उम्र-ए-रफ़्ता मैं तिरे हाथ भी क्या आया हूँ

आफ़ताब अहमद

उन से हर हाल में तुम सिलसिला-जुम्बाँ रखना

अफ़सर माहपुरी

पल-दो-पल

अफ़रोज़ आलम

हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद

आदिल मंसूरी

मैं साज़ ढूँडती रही

अदा जाफ़री

हसरत-ए-दीद रही दीद का ख़्वाहाँ हो कर

अबु मोहम्मद वासिल

आगे वो जा भी चुके लुत्फ़-ए-नज़ारा भी गया

अबु मोहम्मद वासिल

इलाही क्या कभी पूरे ये अरमाँ हो भी सकते हैं

अबरार शाहजहाँपुरी

हैराँ नहीं हैं हम कि परेशाँ नहीं हैं हम

अब्र अहसनी गनौरी

फटा हुआ जो गरेबाँ दिखाई देता है

आबिद वदूद

ख़ुद सवाल आप ही जवाब हूँ मैं

आबिद मुनावरी

मैं भी तन्हा इस तरफ़ हूँ वो भी तन्हा उस तरफ़

अब्दुस्समद ’तपिश’

देख कर मेरी अना किस दर्जा हैरानी में है

अब्दुस्समद ’तपिश’

जब भी गुलशन में चली ठंडी हवा

अब्दुल मन्नान तरज़ी

मरहम-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर हो जाए

अब्दुल मजीद हैरत

मरहम ज़ख़्म-ए-जिगर हो जाए

अब्दुल मजीद हैरत

दिल को दिल से काम रहेगा

अब्दुल हमीद अदम

दिल है बड़ी ख़ुशी से इसे पाएमाल कर

अब्दुल हमीद अदम

दिल डूब न जाएँ प्यासों के तकलीफ़ ज़रा फ़रमा देना

अब्दुल हमीद अदम

पस-ए-तक़रीब-ए-मुलाक़ात

अब्दुल अहद साज़

मरने की पुख़्ता-ख़याली में जीने की ख़ामी रहने दो

अब्दुल अहद साज़

अभी उस की ज़रूरत थी

अब्बास ताबिश

क़िस्मत में ख़ुशी जितनी थी हुई और ग़म भी है जितना होना है

आले रज़ा रज़ा

हस्ती के भयानक नज़्ज़ारे साथ अपने चले हैं दुनिया से

आल-ए-अहमद सूरूर

पाँव फिर होवेंगे और दश्त-ए-मुग़ीलाँ होगा

आग़ा अकबराबादी

ख़ुद मज़ेदार तबीअ'त है तो सामाँ कैसा

आग़ा अकबराबादी

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