कदम Poetry (page 18)

क्यूँ हर उरूज को यहाँ आख़िर ज़वाल है

सग़ीर मलाल

राहज़न आदमी रहनुमा आदमी

साग़र सिद्दीक़ी

ख़ता-वार-ए-मुरव्वत हो न मरहून-ए-करम हो जा

साग़र सिद्दीक़ी

हम आँखों से भी अर्ज़-ए-तमन्ना नहीं करते

साग़र निज़ामी

इक्कीसवीं सदी का आदमी

साग़र ख़य्यामी

होली

साग़र ख़य्यामी

रह-ए-हयात में बस वो क़दम बढ़ा के चले

साग़र ख़य्यामी

रह-ए-हयात में बस वो क़दम बढ़ा के चले

साग़र ख़य्यामी

कोई आबाद मंज़िल हम जो वीराँ देख लेते हैं

सफ़ी लखनवी

नज़्म

सईदुद्दीन

ये हादसा भी तो कुछ कम न था सबा के लिए

सईद अहमद अख़्तर

ज़वाल के आईने में ज़िंदा अक्स

सईद अहमद

बद-गुमान

सईद अहमद

होने की इक झलक सी दिखा कर चला गया

सईद अहमद

हैरत-ए-पैहम हुए ख़्वाब से मेहमाँ तिरे

सईद अहमद

एक इक लम्हा मुझे ज़ीस्त से बे-ज़ारी है

सादिक़ इंदौरी

बिस्तर बिछा के रात वो कमरे में सो गया

सादिक़

रास्ते फैले हुए जितने भी थे पत्थर के थे

सदफ़ जाफ़री

मिलते नहीं हैं जब हमें ग़म-ख़्वार एक दो

सदफ़ जाफ़री

चिलचिलाती-धूप थी लेकिन था साया हम-क़दम

साबिर

ख़ूबियों को मस्ख़ कर के ऐब जैसा कर दिया

साबिर

रक्खे हर इक क़दम पे जो मुश्किल की आगही

सबीला इनाम सिद्दीक़ी

हम ने ख़ाक-ए-दर-ए-महबूब जो चेहरे पे मली

सबा जायसी

मुसाफ़िरान-ए-रह-ए-शौक़ सुस्त-गाम हो क्यूँ

सबा अकबराबादी

मंज़िल पे पहुँचने का मुझे शौक़ हुआ तेज़

सबा अकबराबादी

जुनूँ में गुम हुए होश्यार हो कर

सबा अकबराबादी

जो हमारे सफ़र का क़िस्सा है

सबा अकबराबादी

ग़ालिबन मेरे अलावा कोई गुज़रा भी नहीं

सबा अकबराबादी

सामने उन को पाया तो हम खो गए आज फिर हसरत-ए-गुफ़्तुगू रह गई

सबा अफ़ग़ानी

ये मस्जिद है ये मय-ख़ाना तअ'ज्जुब इस पर आता है

साइल देहलवी

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