कदम Poetry (page 19)

मिले ग़ैरों से मुझ को रंज ओ ग़म यूँ भी है और यूँ भी

साइल देहलवी

होते ही जवाँ हो गए पाबंद-ए-हिजाब और

साइल देहलवी

रू-ए-ज़मीं नहीं कि सर-ए-आसमाँ नहीं

रोहित सोनी ‘ताबिश’

बाद में रखे सराबों के दयारों में क़दम

रियाज़ लतीफ़

मैं वहाँ हूँ कि नहीं चाहे तो जा कर देखे

रियाज़ लतीफ़

उठता है एक पाँव तो थमता है एक पाँव

रियाज़ ख़ैराबादी

ज़रूर पाँव में अपने हिना वो मल के चले

रियाज़ ख़ैराबादी

ये कहाँ लगी ये कहाँ लगी जो क़फ़स से शोर-ए-फ़ुग़ाँ उठा

रियाज़ ख़ैराबादी

उस हुस्न का शैदा हूँ उस हुस्न का दीवाना

रियाज़ ख़ैराबादी

ख़्वाब में भी नज़र आ जाए जो घर की सूरत

रियाज़ ख़ैराबादी

जोबन उन का उठान पर कुछ है

रियाज़ ख़ैराबादी

जफ़ा में नाम निकालो न आसमाँ की तरह

रियाज़ ख़ैराबादी

गुल मुरक़्क़ा' हैं तिरे चाक गरेबानों के

रियाज़ ख़ैराबादी

बाला-ए-बाम ग़ैर है में आस्तान पर

रियाज़ ख़ैराबादी

आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए-नाशाद आया

रियाज़ ख़ैराबादी

ये आलम-ए-वहशत है कि दहशत का असर है

रियासत अली ताज

ज़ुल्फ़ें छोड़ीं हैं कि जोड़ा उस ने छोड़ा साँप का

रिन्द लखनवी

नीस्त बे-यार मुझ को हस्ती है

रिन्द लखनवी

ख़ामोश दाब-ए-इश्क़ को बुलबुल लिए हुए

रिन्द लखनवी

चढ़ी तेरे बीमार-ए-फ़ुर्क़त को तब है

रिन्द लखनवी

आज इंकार न फ़रमाइए आप

रिन्द लखनवी

आफ़त शब-ए-तन्हाई की टल जाए तो अच्छा

रिन्द लखनवी

अगर क़दम तिरे मय-कश का लड़खड़ा जाए

रिफ़अत सुलतान

मोहब्बत में वफ़ा वालों को कब ईज़ा सताती है

रिफ़अत सेठी

होते हैं ख़त्म अब ये लम्हात ज़िंदगी के

रिफ़अत सेठी

नज़र उठाएँ तो क्या क्या फ़साना बनता है

रहमान फ़ारिस

शायद कभी ऐसा हो कुछ फ़िल्म सा कर जाऊँ

रज़्ज़ाक़ अरशद

कुंज-ए-इज़्ज़त से उठो सुब्ह-ए-बहाराँ देखो

रज़ी तिर्मिज़ी

आए हम शहर-ए-ग़ज़ल में तो इस आग़ाज़ के साथ

राज़ी अख्तर शौक़

घर की रौनक़

रज़ा नक़वी वाही

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