चिलचिलाती-धूप थी लेकिन था साया हम-क़दम
साएबाँ की छाँव ने मुझ को अकेला कर दिया
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फ़स्ल बोई भी हम ने काटी भी
उस के शर से मैं सदा माँगता रहता हूँ पनाह
आफ़रीं लुत्फ़-ए-कलाम-ए-यार पर
तिरे तसव्वुर की धूप ओढ़े खड़ा हूँ छत पर
सैंत कर ईमान कुछ दिन और रखना है अभी
हम उस की ख़ातिर बचा न पाएँगे उम्र अपनी
हँस हँस के उस से बातें किए जा रहे हो तुम
वा'दा था कब का बार-ए-ख़ुदा सोचने तो दे
मुझे क़रार भँवर में उसे किनारे में
ख़ूबियों को मस्ख़ कर के ऐब जैसा कर दिया
हमारी बेचैनी उस की पलकें भिगो गई है
आहिस्ता बोलिएगा तमाशा खड़ा न हो