फ़स्ल बोई भी हम ने काटी भी
अब न कहना ज़मीन बंजर है
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वो और होंगे नुफ़ूस बे-दिल जो कहकशाएँ शुमारते हैं
सैंत कर ईमान कुछ दिन और रखना है अभी
मुझे क़रार भँवर में उसे किनारे में
ये कारोबार-ए-मोहब्बत है तुम न समझोगे
आहिस्ता बोलिएगा तमाशा खड़ा न हो
उस के शर से मैं सदा माँगता रहता हूँ पनाह
सारे मंज़र हसीन लगते हैं
ख़ूबियों को मस्ख़ कर के ऐब जैसा कर दिया
हँस हँस के उस से बातें किए जा रहे हो तुम
चिलचिलाती-धूप थी लेकिन था साया हम-क़दम