सैंत कर ईमान कुछ दिन और रखना है अभी
आज-कल बाज़ार में मंदी है सस्ता है अभी
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फ़स्ल बोई भी हम ने काटी भी
अख़ीर-ए-शब सर्द राख चूल्हे की झाड़ लाएँ
आफ़रीं लुत्फ़-ए-कलाम-ए-यार पर
ख़ूबियों को मस्ख़ कर के ऐब जैसा कर दिया
रखे रखे हो गए पुराने तमाम रिश्ते
वो और होंगे नुफ़ूस बे-दिल जो कहकशाएँ शुमारते हैं
सारे मंज़र हसीन लगते हैं
तुम्हारे आलम से मेरा आलम ज़रा अलग है
सच यही है कि बहुत आज घिन आती है मुझे
मुझे क़रार भँवर में उसे किनारे में