रखे रखे हो गए पुराने तमाम रिश्ते
कहाँ किसी अजनबी से रिश्ता नया बनाएँ
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Gulzar
Javed Akhtar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
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मुख़्तसर ही सही मयस्सर है
ये कारोबार-ए-मोहब्बत है तुम न समझोगे
ये क्या बद-मज़ाक़ी है गर्द झाड़ते क्यूँ हो
तुम्हारे आलम से मेरा आलम ज़रा अलग है
हँस हँस के उस से बातें किए जा रहे हो तुम
सच यही है कि बहुत आज घिन आती है मुझे
उस के शर से मैं सदा माँगता रहता हूँ पनाह
फ़स्ल बोई भी हम ने काटी भी
अख़ीर-ए-शब सर्द राख चूल्हे की झाड़ लाएँ
चिलचिलाती-धूप थी लेकिन था साया हम-क़दम
सभी मुसाफ़िर चलें अगर एक रुख़ तो क्या है मज़ा सफ़र का