किस्मत Poetry (page 12)

मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था

ग़ालिब

जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की

ग़ालिब

हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब'

ग़ालिब

देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाए है

ग़ालिब

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ग़ालिब

सियाही जैसे गिर जाए दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर

ग़ालिब

शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला

ग़ालिब

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं

ग़ालिब

क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को

ग़ालिब

निकोहिश है सज़ा फ़रियादी-ए-बे-दाद-ए-दिलबर की

ग़ालिब

मैं उन्हें छेड़ूँ और वो कुछ न कहें

ग़ालिब

जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की

ग़ालिब

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना

ग़ालिब

देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाए है

ग़ालिब

देख कर दर-पर्दा गर्म-ए-दामन-अफ़्शानी मुझे

ग़ालिब

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ

ग़ालिब

दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ

ग़ालिब

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना

ग़ालिब

दूसरा कप

गीताञ्जलि राय

वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातें

फ़िराक़ गोरखपुरी

रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिन की ज़िंदगी दामन तक है बेचारे फ़रज़ाने हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

हाथ आए तो वही दामन-ए-जानाँ हो जाए

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब अक्सर चुप चुप से रहें हैं यूँही कभू लब खोलें हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

न अपनी बात न मेरा क़ुसूर लिक्खा था

फ़सीहुल्ला नक़ीब

लटकाई दीवार पे किस ने हातिम की तस्वीर

फ़सीह अकमल

सोचते रहने से क्या क़िस्मत का लिक्खा जाएगा

फ़र्रुख़ जाफ़री

कैसे इन सच्चे जज़्बों की अब उस तक तफ़्हीम करूँ

फ़ारूक़ बख़्शी

मोहब्बत का ये रुख़ देखा नहीं था

फ़रहत नदीम हुमायूँ

वो बहकी निगाहें क्या कहिए वो महकी जवानी क्या कहिए

फ़रहत कानपुरी

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