व्यर्थ Poetry (page 4)

फेंक यूँ पत्थर कि सत्ह-ए-आब भी बोझल न हो

इक़बाल साजिद

रवाँ हूँ मैं

इक़बाल कौसर

शाख़-ए-अदम

इंजिला हमेश

एक लम्हा लौट कर आया नहीं

इनाम नदीम

हर तरफ़ मज्मा-ए-आशिक़ाँ है

इमदाद अली बहर

जब 'मीर' ओ 'मीरज़ा' के सुख़न राएगाँ गए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ग़ैरों से दाद-ए-जौर-ओ-जफ़ा ली गई तो क्या

इफ़्तिख़ार आरिफ़

तिरी ज़मीं से उठेंगे तो आसमाँ होंगे

इब्राहीम अश्क

फिर शाम हुई

इब्न-ए-इंशा

जुनूँ का मिरे इम्तिहाँ हो रहा है

हैरत गोंडवी

नफ़स नफ़स न कहीं जाए राएगाँ अपना

हबीब राहत हबाब

न हो कुछ और तो वो दिल अता हो

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

जिस के वास्ते बरसों सई-ए-राएगाँ की है

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

मोहब्बत के सिवा हर्फ़-ओ-बयाँ से कुछ नहीं होता

गुलज़ार बुख़ारी

मिरे पर न बाँधो

ग़ज़ाला ख़ाकवानी

तुझे किस तरह छुड़ाऊँ ख़लिश-ए-ग़म-ए-निहाँ से

फ़िज़ा जालंधरी

दास्तानों में मिले थे दास्ताँ रह जाएँगे

फ़ाज़िल जमीली

तल्ख़ गुज़रे कि शादमाँ गुज़रे

फ़रीद जावेद

तल्ख़ गुज़रे कि शादमाँ गुज़रे

फ़रीद जावेद

तल्ख़ गुज़रे कि शादमाँ गुज़रे

फ़रीद जावेद

हम जिसे समझते थे सई-ए-राएगाँ यारो

फ़रीद जावेद

कहीं यक़ीं से न हो जाएँ हम गुमाँ की तरह

फ़रह इक़बाल

तेरा निगाह-ए-शौक़ कोई राज़-दाँ न था

फ़ानी बदायुनी

तसव्वुर में कोई आया सुकून-ए-क़ल्ब-ओ-जाँ हो कर

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

फिर हरीफ़-ए-बहार हो बैठे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

इन उजड़ी बस्तियों का कोई तो निशाँ रहे

एज़ाज़ अहमद आज़र

यहीं था बैठा हुआ दरमियाँ कहाँ गया मैं

एजाज़ गुल

चल रहा हूँ पेश-ओ-पस-मंज़र से उकताया हुआ

एजाज़ गुल

ख़्वाब ओ ताबीर-ए-बे-निशाँ मैं था

एजाज़ आज़मी

वो बहते दरिया की बे-करानी से डर रहा था

दिलावर अली आज़र

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