रास्ता Poetry (page 6)

कहते हैं सर-ए-राह मुनासिब नहीं मिलना

वासिफ़ देहलवी

इज़्ज़त उन्हें मिली वही आख़िर बड़े रहे

वासिफ़ देहलवी

हरीम-ए-नाज़ को हम ग़ैर की महफ़िल नहीं कहते

वासिफ़ देहलवी

ऐ भँवर तेरी तरह बेबाक हो जाएँगे हम

वसीम मलिक

हम ने उस शोख़ की रानाई क़ामत देखी

वसीम ख़ैराबादी

यही बज़्म-ए-ऐश होगी यही दौर-ए-जाम होगा

वसीम बरेलवी

उस ने मेरी राह न देखी और वो रिश्ता तोड़ लिया

वसीम बरेलवी

तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते

वसीम बरेलवी

रंग बे-रंग हों ख़ुशबू का भरोसा जाए

वसीम बरेलवी

मैं अपने ख़्वाब से बिछड़ा नज़र नहीं आता

वसीम बरेलवी

लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होता

वसीम बरेलवी

भला ग़मों से कहाँ हार जाने वाले थे

वसीम बरेलवी

अंधेरा ज़ेहन का सम्त-ए-सफ़र जब खोने लगता है

वसीम बरेलवी

लहू लहू सा दिल-ए-दाग़-दार ले के चले

वाक़िफ़ राय बरेलवी

ख़ुश-नज़र कह के टाल दे मुझ को

वक़ार वासिक़ी

ग़ैर-मुमकिन था ये इक काम मगर हम ने किया

वक़ार वासिक़ी

ये मानता हूँ कि सौ बार झूट कहता है

वक़ार ख़ान

कुएँ जो पानी की बिन प्यास चाह रखते हैं

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

देखिए कब राह पर ठीक से उट्ठें क़दम

वामिक़ जौनपुरी

मुदावा

वामिक़ जौनपुरी

कार्ल मार्क्स

वामिक़ जौनपुरी

ज़हराब पीने वाले अमर हो के रह गए

वामिक़ जौनपुरी

नए गुल खिले नए दिल बने नए नक़्श कितने उभर गए

वामिक़ जौनपुरी

बर्क़ सर-ए-शाख़-सार देखिए कब तक रहे

वामिक़ जौनपुरी

अभी तो हौसला-ए-कारोबार बाक़ी है

वामिक़ जौनपुरी

क्या कहूँ कि क्या हूँ मैं

वलीउल्लाह वली

कोई अपने वास्ते महशर उठा कर ले गया

वलीउल्लाह वली

दोस्ती छूटे छुड़ाए से किसू के किस तरह

वलीउल्लाह मुहिब

साथ ग़ैरों के है सदा गट-पट

वलीउल्लाह मुहिब

पहले सफ़-ए-उश्शाक़ में मेरा ही लहू चाट

वलीउल्लाह मुहिब

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