फैलोशिप Poetry (page 4)

अक्स उभरा न था आईना-ए-दिल-दारी का

एजाज़ गुल

मिरी बे-क़रारी मिरी आह-ओ-ज़ारी ये वहशत नहीं है तो फिर और क्या है

द्वारका दास शोला

फ़ासला

बशर नवाज़

औरों पे इत्तिफ़ाक़ से सब्क़त मिली मुझे

बाक़र मेहदी

अब नहीं दर्द छुपाने का क़रीना मुझ में

बक़ा बलूच

कोई आसान रिफ़ाक़त नहीं लिक्खी मैं ने

अज़्म बहज़ाद

वुसअत-ए-चश्म को अंदोह-ए-बसारत लिख्खा

अज़्म बहज़ाद

कोई भी शक्ल मिरे दिल में उतर सकती है

अज़हर फ़राग़

ग़म का ये सलीक़ा भी रह गया है अब हम तक

अज़ीम मुर्तज़ा

सौ रंग है किस रंग से तस्वीर बनाऊँ

अतहर नफ़ीस

क्या बात निराली है मुझ में किस फ़न में आख़िर यकता हूँ

अतहर नफ़ीस

तुझ को ख़िफ़्फ़त से बचा लूँ पानी

अता आबिदी

बे-सबब ख़ौफ़ से दिल मेरा लरज़ता क्यूँ है

असरा रिज़वी

किसे कहें कि रिफ़ाक़त का दाग़ है दिल पर

असलम अंसारी

अब और चलने का इस दिल में हौसला ही न था

असलम अंसारी

ये इंतिज़ार नहीं शम्अ है रिफ़ाक़त की

अरशद अब्दुल हमीद

सुख़न के चाक में पिन्हाँ तुम्हारी चाहत है

अरशद अब्दुल हमीद

ख़्वाब बिखरेंगे तो हम को भी बिखरना होगा

अनवर मीनाई

सभी दरवाज़े खुले हैं मिरी तन्हाई के

अंजुम सलीमी

हिसाब-ए-जाँ!!

अंजुम सलीमी

खींच लाया तुझे एहसास-ए-तहफ़्फ़ुज़ मुझ तक

अमीता परसुराम 'मीता'

बाद मरने के भी छोड़ी न रिफ़ाक़त मेरी

अमीर मीनाई

हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी

अमीर मीनाई

मिला भी ज़ीस्त में क्या रन्ज-ए-रह-गुज़ार से कम

अंबरीन हसीब अंबर

सफ़ीर-ए-लैला-3

अली अकबर नातिक़

हब्स-ए-दरूँ पे जिस्म-ए-गिराँ-बार संग था

अकरम नक़्क़ाश

दिल-ए-शोरीदा की वहशत नहीं देखी जाती

अख़्तर सईद ख़ान

नज़्म

अख़्तर हुसैन जाफ़री

मुहताज हम-सफ़र की मसाफ़त न थी मिरी

ऐतबार साजिद

आँखों से अयाँ ज़ख़्म की गहराई तो अब है

ऐतबार साजिद

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