ये इंतिज़ार नहीं शम्अ है रिफ़ाक़त की
इस इंतिज़ार से तन्हाई ख़ूब-सूरत है
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ग़म-ए-जहान ओ ग़म-ए-यार दो किनारे हैं
सुख़न के चाक में पिन्हाँ तुम्हारी चाहत है
मिले जो उस से तो यादों के पर निकल आए
कुछ सितारे मिरी पलकों पे चमकते हैं अभी
इश्क़ मरहून-ए-हिकायात-ओ-गुमाँ भी होगा
मिरे ख़ेमे ख़स्ता-हाल में हैं मिरे रस्ते धुँद के जाल में हैं
फ़सील-ए-सब्र में रौज़न बनाना चाहती है
ये किस को याद किया रूह की ज़रूरत ने
हल्क़ा-ए-दिल से न निकलो कि सर-ए-कूचा-ए-ख़ाक