ये दुनिया अकबर ज़ुल्मों की हम मजबूरी की अनारकली
हम दीवारों के बीच में हैं हम नरग़ा-ए-जब्र-ओ-जलाल में हैं
Allama Iqbal
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सुख़न के चाक में पिन्हाँ तुम्हारी चाहत है
है टोंक अर्ज़-ए-पाक वहीं से उठेंगे हम
ख़ामोशी तक तो एक सदा ले गई मुझे
ये किस को याद किया रूह की ज़रूरत ने
जिंस-ए-मख़लूत हैं और अपने ही आज़ार में हैं
मिरे ख़ेमे ख़स्ता-हाल में हैं मिरे रस्ते धुँद के जाल में हैं
चिराग़-ए-दर्द कि शम-ए-तरब पुकारती है
हवेली छोड़ने का वक़्त आ गया 'अरशद'
मिले जो उस से तो यादों के पर निकल आए
लकीर-ए-संग को अन्क़ा-मिसाल हम ने किया
इश्क़ मरहून-ए-हिकायात-ओ-गुमाँ भी होगा