ये किस को याद किया रूह की ज़रूरत ने
ये किस के नाम से मेरे लहू में फूल खिले
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मिट्टी को चूम लेने की हसरत ही रह गई
उन्हें ये ज़ोम कि बे-सूद है सदा-ए-सुख़न
मैं अपने आप को भी देखने से क़ासिर हूँ
हल्क़ा-ए-दिल से न निकलो कि सर-ए-कूचा-ए-ख़ाक
इश्क़ मरहून-ए-हिकायात-ओ-गुमाँ भी होगा
मिरे ख़ेमे ख़स्ता-हाल में हैं मिरे रस्ते धुँद के जाल में हैं
मुझ को तक़दीर ने यूँ बे-सर-ओ-आसार किया
चिराग़-ए-दर्द कि शम-ए-तरब पुकारती है
ग़लत नहीं है दिल-ए-सुल्ह-ख़ू जो बोलता है
जिंस-ए-मख़लूत हैं और अपने ही आज़ार में हैं
हमें तो शम्अ के दोनों सिरे जलाने हैं