रास्ता Poetry (page 9)

शनासा-ए-हक़ीक़त हो गए हैं

हामिदी काश्मीरी

अब मिरा दर्द न तेरा जादू

हमीद नसीम

बर्फ़ की वादी

हमीद अलमास

जितने अच्छे लोग हैं वो मुझ से वाबस्ता रहे

हमीद अलमास

मेरे सामने मेरे घर का पूरा नक़्शा बिखरा है

हकीम मंज़ूर

अंदर की दुनियाएँ मिला के एक नगर हो जाएँ

हैदर क़ुरैशी

फ़रेब-ए-हुस्न से गब्र-ओ-मुसलमाँ का चलन बिगड़ा

हैदर अली आतिश

फिर लुत्फ़-ए-ख़लिश देने लगी याद किसी की

हफ़ीज़ जालंधरी

कौन बताए कौन सुझाए कौन से देस सिधार गए

हबीब जालिब

हुजूम देख के रस्ता नहीं बदलते हम

हबीब जालिब

फ़लक की गर्दिशें ऐसी नहीं जिन में क़दम ठहरे

हबीब मूसवी

याद जो आए ख़ुद शरमाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने

हबीब आरवी

ख़ुदा

गुलज़ार

अकेले

गुलज़ार

फूल ने टहनी से उड़ने की कोशिश की

गुलज़ार

काविश-ए-बे-सूद

ग़ज़ाला ख़ाकवानी

सहरा जंगल सागर पर्बत

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

पेड़ अगर ऊँचा मिलता है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

हिज्र के तपते मौसम में भी दिल उन से वाबस्ता है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ'

ग़ुलाम मौला क़लक़

ख़्वाब आँखों की गली छोड़ के जाने निकले

ग़यास मतीन

जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं

ग़ालिब

मैं कैसे भूलूँ वो रातें

गीताञ्जलि राय

जाता है जो घरों को वो रस्ता बदल दिया

फ़ातिमा हसन

वो अपनी ज़ात में गुम था नहीं खुला मिरे साथ

फ़रताश सय्यद

वो अपनी ज़ात में गुम था नहीं खुला मेरे साथ

फ़रताश सय्यद

मंज़र अजब था अश्कों को रोका नहीं गया

फ़ारूक़ शफ़क़

दुनिया क्या है बर्फ़ की इक अलमारी है

फ़ारूक़ शफ़क़

में इक गाँव का शाएर हूँ

फ़ारूक़ नाज़की

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