प्रकाश Poetry (page 7)
हवा बातों की जो चलने लगी है
स्वप्निल तिवारी
हर क़दम साँपों की आहट और मैं
सालेह नदीम
ख़्वाब देखता हूँ
सुरूर बाराबंकवी
सुनी है रौशनी के क़त्ल की जब से ख़बर मैं ने
सुरूर अम्बालवी
याद है इक एक लम्हे का खिचाव देखना
सूरज नारायण
सदियों का दर्द मेरे कलेजे में पाल कर
सूरज नारायण
मैं दिन को रात के दरिया में जब उतार आया
सूरज नारायण
ऐसा लगता है किसी गुम्बद से टकराई न थी
सूरज नारायण
कोई शय है जो सनसनाती है
सुनील आफ़ताब
कोई शय है जो सनसनाती है
सुनील आफ़ताब
हरा शजर न सही ख़ुश्क घास रहने दे
सुल्तान अख़्तर
बराए नाम सही दिन के हाथ पीले हैं
सुल्तान अख़्तर
बराए नाम सही दिन के हाथ पीले हैं
सुल्तान अख़्तर
हया भी आँख में वारफ़्तगी भी
सुलेमान ख़ुमार
तिरा दिल तो नहीं दिल की लगी हूँ
सुलैमान अरीब
नहीं जो तेरी ख़ुशी लब पे क्यूँ हँसी आए
सुलैमान अरीब
ख़िज़ाँ की आज़माइश हो गया हूँ
सुहैल अख़्तर
सफ़र में अब भी आदतन सराब देखता हूँ मैं
सुहैल अहमद ज़ैदी
नवाह-ए-जाँ में कहीं अबतरी सी लगती है
सुहैल अहमद ज़ैदी
जैसा हमें गुमान था वैसा नहीं रहा
सुहैल अहमद ज़ैदी
कब तक भँवर के बीच सहारा मिले मुझे
सुग़रा सदफ़
बुझी बुझी सी सितारों की रौशनी है अभी
सूफ़ी तबस्सुम
बढ़ा जो दर्द-ए-जिगर ग़म से दोस्ती कर ली
सुभाष पाठक ज़िया
इक रौशनी का ज़हर था जो आँख भर गया
सोहन राही
ख़बर रिहाई की मिल चुकी है चराग़ फूलों के जल रहे हैं
सिराज लखनवी
ये जब्र-ए-ज़िंदगी न उठाएँ तो क्या करें
सिराज लखनवी
मदद ऐ ख़याल-ए-माज़ी ज़रा आइना उठाना
सिराज लखनवी
अब इतनी अर्ज़ां नहीं बहारें वो आलम-ए-रंग-ओ-बू कहाँ है
सिराज लखनवी
जब खुले मुट्ठी तो सब पढ़ लें ख़त-ए-तक़्दीर को
सिद्दीक़ अफ़ग़ानी
फ़ुग़ान-ए-रूह कोई किस तरह सुनाए उसे
सिद्दीक़ शाहिद
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