समुद्र Poetry (page 7)

फ़िक्र-ए-ईजाद में हूँ खोल नया दर कोई

शाहिद कमाल

धूप के ज़र्द जज़ीरों में नुमू ज़िंदा है

शाहिद कमाल

मिरी नज़र कि तरह दिल परिंद ओझल है

शाहिद जमील

लगता है जिस का रुख़-ए-ज़ेबा मह-ए-कामिल मुझे

शाहिद ग़ाज़ी

हम दोनों ने नाम लिखा था साहिल पर

शाहिद फ़रीद

मोहब्बत मुझ से कहती थी ज़रा होश्यार दामन से

शाहिद भोपाली

आस

शाहिद अख़्तर

ये हम कौन हैं

शाहीन मुफ़्ती

यूँ उलझ कर रह गई है तार-ए-पैराहन में रात

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

जब भी कश्ती के मुक़ाबिल भँवर आता है कोई

शहाब सफ़दर

शाम रखती है बहुत दर्द से बेताब मुझे

शहाब जाफ़री

क़ैद-ए-इम्काँ से तमन्ना थी गमीं छूट गई

शहाब जाफ़री

मैं ही मैं बिखरा हुआ हूँ राह-ता-मंज़िल तमाम

शहाब जाफ़री

ज़ुल्फ़ छुटती तिरे रुख़ पर तो दिल अपना फिरता

शाह नसीर

सरज़मीन-ए-ज़ुल्फ़ में क्या दिल ठिकाने लग गया

शाह नसीर

जो गुज़रे है बर आशिक़-ए-कामिल नहीं मालूम

शाह नसीर

इक पल भी मिरे हाल से ग़ाफ़िल नहीं ठहरा

शफ़ीक़ सलीमी

कोई टूटी हुई कश्ती का तख़्ता भी अगर है ला

शफ़ीक़ जौनपुरी

मोहब्बत की करिश्मा-साज़ियाँ आवाज़ देती हैं

शफ़ीक़ आसिफ़

मैं हैरत ओ हसरत का मारा ख़ामोश खड़ा हूँ साहिल पर

शाद अज़ीमाबादी

ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम

शाद अज़ीमाबादी

ज़ौक़-ए-नज़र को इज़्न-ए-नज़ारा न मिल सका

शबनम शकील

नज़्म

शबनम अशाई

सदा रहेगी यही रवानी रवाँ है पानी

शब्बीर शाहिद

बहार की धूप में नज़ारे हैं उस किनारे

शब्बीर शाहिद

जो हो वरा-ए-ज़ात वो जीना ही और है

शानुल हक़ हक़्क़ी

इधर मौसम की ये ख़ुश-एहतिमामी

शानुल हक़ हक़्क़ी

औरत

शाद आरफ़ी

उठ गई उस की नज़र मैं जो मुक़ाबिल से उठा

शाद आरफ़ी

चाहते हैं घर बुतों के दिल में हम

शाद आरफ़ी

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