समुद्र Poetry (page 5)

रहबर-ए-जादा-ए-मंज़िल पे हँसी आती है

सोज़ नजीबाबादी

वफ़ाओं के इरादे वुसअ'त-ए-मंज़िल में रहते हैं

सोज़ बरेलवी

वही सितारा जो बुझ गया हम-सफ़र था मेरा

सिराज मुनीर

आँखों पर अपनी रख कर साहिल की आस्तीं को

सिराज लखनवी

अच्छा क़िसास लेना फिर आह-ए-आतिशीं से

सिराज लखनवी

आँखों में आज आँसू फिर डबडबा रहे हैं

सिराज लखनवी

ज़ख़्म-ए-दिल अब फूल बन कर खिल गया

शोला हस्पानवी

तुझे दिल में बसाएँगे तिरे ही ख़्वाब देखेंगे

शमशाद शाद

जिन के फ़ुटपाठ पे घर पाँव में छाले होंगे

शिफ़ा कजगावन्वी

हिजाब-ए-राज़ फ़ैज़-ए-मुर्शिद-ए-कामिल से उठता है

शेर सिंह नाज़ देहलवी

दिल दिया है हम ने भी वो माह-ए-कामिल देख कर

शेर सिंह नाज़ देहलवी

आसमाँ तुझ से किनारा कहीं करना है मुझे

शहज़ाद रज़ा लम्स

मौज-ए-हवा तो अब के अजब काम कर गई

शीन काफ़ निज़ाम

क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म

शाज़ तमकनत

दिल-शिकस्ता हुए टूटा हुआ पैमान बने

शाज़ तमकनत

बाक़ी न रहे होश जुनूँ ऐसा हुआ तेज़

शौक़ माहरी

मौज-ए-तूफ़ाँ से निकल कर भी सलामत न रहे

शौकत परदेसी

सफ़र से मुझ को बद-दिल कर रहा था

शारिक़ कैफ़ी

नहीं मैं हौसला तो कर रहा था

शारिक़ कैफ़ी

कहीं न था वो दरिया जिस का साहिल था मैं

शारिक़ कैफ़ी

जो अपनी चश्म-ए-तर से दिल का पारा छोड़ जाता है

शारिब मौरान्वी

मौज-ए-दरिया को पिएँ क्या ग़म-ए-ख़म्याज़ा करें

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

ये अर्ज़-ओ-समा क़ुलज़ुम-ओ-सहरा मुतहर्रिक

शम्स रम्ज़ी

ज़ुल्मत-गह-ए-दौराँ में सुब्ह-ए-चमन-ए-दिल हूँ

शमीम करहानी

बचाओ दामन-ए-दिल ऐसे हम-नशीनों से

शमीम करहानी

सफ़ीना वो कभी शायान-ए-साहिल हो नहीं सकता

शमीम जयपुरी

न पूछ कब से ये दम घुट रहा है सीने में

शमीम जयपुरी

जो हँस हँस के हर ग़म गवारा करे है

शमीम जयपुरी

जब सुब्ह का मंज़र होता है या चाँदनी-रातें होती हैं

शमीम जयपुरी

बा-वफ़ाई की अदा पाने लगा हूँ तुझ में

शमीम जयपुरी

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