साथ Poetry (page 1)

दयार-ए-ख़्वाब को निकलूँगा सर उठा कर मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

सर पर किसी ग़रीब के नाचार गिर पड़े

ग़ुलाम हुसैन साजिद

दिन हो कि हो वो रात अभी कल की बात है

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

सुल्तान अख़्तर पटना के नाम

रज़ा नक़वी वाही

पिछले बरस तुम साथ थे मेरे और दिसम्बर था

फ़रह शाहिद

ये हसरतें भी मिरी साइयाँ निकाली जाएँ

एहतिमाम सादिक़

चले हैं साथ हम अंजान हो कर

फ़रह शाहिद

दीवार

मुबश्शिर अली ज़ैदी

याद रह जाने की कोशिश

मुबश्शिर अली ज़ैदी

तलाश

मुबश्शिर अली ज़ैदी

तिरे ख़याल के बादल उतर के आए हैं

तरुणा मिश्रा

चले ही जाएगी क्या दर्द की कटारी भला

अनवर अंजुम

इस्तिआ'रा

हारिस ख़लीक़

फ़रार कोई नहीं

हारिस ख़लीक़

आस

ममता तिवारी

सीढ़ियाँ

ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी

दश्त-ए-उम्र

काशिफ़ रफ़ीक़

वही मैं हूँ वही मेरी कहानी है

मोईन निज़ामी

कब लज़्ज़तों ने ज़ेहन का पीछा नहीं किया

अनवर अंजुम

गुज़़रेंगे तेरे दौर से जो कुछ भी हाल हो

अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी

जो सकूँ न रास आया तो मैं ग़म में ढल रहा हूँ

अख़्तर आज़ाद

कई अँधेरों के मिलने से रात बनती है

तरकश प्रदीप

कोई नहीं था हुनर-आश्ना तुम्हारे बा'द

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

रौशनी बन के सितारों में रवाँ रहते हैं

अर्श सिद्दीक़ी

मैं किस से पूछता कि भला क्या कमी हुई

नईम गिलानी

हमारे सर पे तब कोई जहाँ होता नहीं था

आशू मिश्रा

ग़ज़ल की चाहतों अशआ'र की जागीर वाले हैं

वरुन आनन्द

दूर का सफ़र

बलराज कोमल

जवाँ होता बुढ़ापा

ममता तिवारी

कल से आज तक

दौर आफ़रीदी

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