साथ Poetry (page 2)

ख़ामोशी का शोर

फ़ैसल हाश्मी

मरहला

दौर आफ़रीदी

नज़्म

अख़्तर हुसैन जाफ़री

अपने शहर के लिए दुआ

मुनीर नियाज़ी

दुश्मन की तरफ़ दोस्ती का हाथ

मुनीर नियाज़ी

मज़दूर

बुशरा सईद

दिल-ए-बे-इख़्तियार की ख़ुश्बू

ऐ अक़्ल साथ रह कि पड़ेगा तुझी से काम

आ दोस्त साथ आ दर-ए-माज़ी से माँग लाएँ

ले के दिल कहते हो उल्फ़त क्या है

शहर-ए-आलाम का शहरयार आ गया

फ़ुग़ाँ के साथ तिरे राहत-ए-क़रार चले

नज़र से छुप गए दिल से जुदा तो होना था

जज़्बा-ए-दर्द-ए-मुहब्बत ने अगर साथ दिया

टेक लगा कर बैठा हूँ मैं जिस बूढ़ी दीवार के साथ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

शुऊर-ओ-फ़िक्र से आगे निकल भी सकता है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

आता है नज़र अंजाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

असरार बड़ी देर में ये मुझ पे खुला है

ज़ुल्फ़िक़ार अहसन

कातता हूँ रात-भर अपने लहू की धार को

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

बैठे बैठे इसी ग़ुबार के साथ

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

बड़ी मुश्किल कहानी थी मगर अंजाम सादा है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

तेवर भी देख लीजिए पहले घटाओं के

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

काम हैं और ज़रूरी कई करने के लिए

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

तन्हाई न पूछ अपनी कि साथ अहल-ए-जुनूँ के

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रक्खा नहीं ग़ुर्बत ने किसी इक का भरम भी

ज़ुहूर नज़र

ख़ुद को पाने की तलब में आरज़ू उस की भी थी

ज़ुहूर नज़र

हयात वक़्फ़-ए-ग़म-ए-रोज़गार क्यूँ करते

ज़ुहूर नज़र

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