साथ Poetry (page 97)

आँखों के बंद बाब लिए भागते रहे

आशुफ़्ता चंगेज़ी

आँगन में छोड़ आए थे जो ग़ार देख लें

आशुफ़्ता चंगेज़ी

मेरे अपने अंदर एक भँवर था जिस में

आनिस मुईन

आज ज़रा सी देर को अपने अंदर झाँक कर देखा था

आनिस मुईन

वो कुछ गहरी सोच में ऐसे डूब गया है

आनिस मुईन

मिलन की साअ'त को इस तरह से अमर किया है

आनिस मुईन

अजब तलाश-ए-मुसलसल का इख़्तिताम हुआ

आनिस मुईन

ये और बात दूर रहे मंज़िलों से हम

आलोक श्रीवास्तव

ये और बात दूर रहे मंज़िलों से हम

आलोक श्रीवास्तव

हमेशा ज़िंदगी की हर कमी को जीते रहते हैं

आलोक श्रीवास्तव

धड़कते साँस लेते रुकते चलते मैं ने देखा है

आलोक श्रीवास्तव

अगर सफ़र में मिरे साथ मेरा यार चले

आलोक श्रीवास्तव

उन के सितम भी कह नहीं सकते किसी से हम

आले रज़ा रज़ा

क़िस्मत में ख़ुशी जितनी थी हुई और ग़म भी है जितना होना है

आले रज़ा रज़ा

हस्ती के भयानक नज़्ज़ारे साथ अपने चले हैं दुनिया से

आल-ए-अहमद सूरूर

ये दौर मुझ से ख़िरद का वक़ार माँगे है

आल-ए-अहमद सूरूर

वो जिएँ क्या जिन्हें जीने का हुनर भी न मिला

आल-ए-अहमद सूरूर

कुछ लोग तग़य्युर से अभी काँप रहे हैं

आल-ए-अहमद सूरूर

हमें तो उन की मोहब्बत है कोई कुछ समझे

आग़ा अकबराबादी

जीते-जी के आश्ना हैं फिर किसी का कौन है

आग़ा अकबराबादी

रिवायत

आदिल रज़ा मंसूरी

दो अजनबी

आदिल रज़ा मंसूरी

रास्ते सिखाते हैं किस से क्या अलग रखना

आदिल रज़ा मंसूरी

एक इक लम्हे को पलकों पे सजाता हुआ घर

आदिल रज़ा मंसूरी

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