साथ Poetry (page 96)

साँस के हम-राह शो'ले की लपक आने को है

अब्बास ताबिश

रम्ज़-गर भी गया रम्ज़-दाँ भी गया

अब्बास ताबिश

रातें गुज़ारने को तिरी रहगुज़र के साथ

अब्बास ताबिश

पस-ए-ग़ुबार भी उड़ता ग़ुबार अपना था

अब्बास ताबिश

नक़्श सारे ख़ाक के हैं सब हुनर मिट्टी का है

अब्बास ताबिश

खा के सूखी रोटियाँ पानी के साथ

अब्बास ताबिश

हम ने चुप रह के जो एक साथ बिताया हुआ है

अब्बास ताबिश

चराग़-ए-सुब्ह जला कोई ना-शनासी में

अब्बास ताबिश

चाँद का पत्थर बाँध के तन से उतरी मंज़र-ए-ख़्वाब में चुप

अब्बास ताबिश

बहुत बे-कार मौसम है मगर कुछ काम करना है

अब्बास ताबिश

मैं उस से दूर रहा उस की दस्तरस में रहा

अब्बास रिज़वी

जिस को हम समझते थे उम्र भर का रिश्ता है

अब्बास रिज़वी

गुज़र गया वो ज़माना वो ज़ख़्म भर भी गए

अब्बास रिज़वी

दिल में है क्या अज़ाब कहे तो पता चले

अातिश इंदौरी

इश्क़ जैसे कहीं छूने से भी लग जाता हो

आतिफ़ वहीद 'यासिर'

गुफ़्तुगू करने लगे रेत के अम्बार के साथ

आतिफ़ वहीद 'यासिर'

सब्र पर दिल को तो आमादा किया है लेकिन

आसी उल्दनी

क़फ़स-नसीबों का उफ़ हाल-ए-ज़ार क्या होगा

आसी रामनगरी

मंज़िल पे ले के पहुँचेगा अज़्म-ए-जवाँ मुझे

आसी रामनगरी

तुझे भुलाने की कोशिश में फिर रहे थे कि हम

आशुफ़्ता चंगेज़ी

तेज़ी से बीतते हुए लम्हों के साथ साथ

आशुफ़्ता चंगेज़ी

जो हर क़दम पे मिरे साथ साथ रहता था

आशुफ़्ता चंगेज़ी

सदाएँ क़ैद करूँ आहटें चुरा ले जाऊँ

आशुफ़्ता चंगेज़ी

पता कहीं से तिरा अब के फिर लगा लाए

आशुफ़्ता चंगेज़ी

इतना क्यूँ शरमाते हैं

आशुफ़्ता चंगेज़ी

हमारे बारे में क्या क्या न कुछ कहा होगा

आशुफ़्ता चंगेज़ी

गुज़र गए हैं जो मौसम कभी न आएँगे

आशुफ़्ता चंगेज़ी

घरौंदे ख़्वाबों के सूरज के साथ रख लेते

आशुफ़्ता चंगेज़ी

दिल डूबने लगा है तवानाई चाहिए

आशुफ़्ता चंगेज़ी

बदन भीगेंगे बरसातें रहेंगी

आशुफ़्ता चंगेज़ी

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