इश्क़ जैसे कहीं छूने से भी लग जाता हो
कौन बैठेगा भला आप के बीमार के साथ
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रहज़नों के हाथ सारा इंतिज़ाम आया तो क्या
मिरी राख में थीं कहीं कहीं मेरे एक ख़्वाब की किर्चियाँ
आँखों को नक़्श-ए-पा तिरा दिल को ग़ुबार कर दिया
तिरी दोस्ती का कमाल था मुझे ख़ौफ़ था न मलाल था
गुफ़्तुगू करने लगे रेत के अम्बार के साथ
किस के बदन की नर्मियाँ हाथों को गुदगुदा गईं