सबा Poetry (page 8)
आए जो चंद तिनके क़फ़स में सबा के साथ
सलाम संदेलवी
बू-ए-गुल बाद-ए-सबा लाई बहुत देर के बा'द
सलाम संदेलवी
फूलों के देस चाँद सितारों के शहर में
सलाम मछली शहरी
बन गई है मौत कितनी ख़ुश-अदा मेरे लिए
सलाम मछली शहरी
ना-ख़ुश जो हो गुल-बदन किसी का
सख़ी लख़नवी
जी जाए मगर न वो परी जाए
सख़ी लख़नवी
इश्क़ करने में दिल भी क्या है शोख़
सख़ी लख़नवी
अपने क़ासिद को सबा बाँधते हैं
सख़ी लख़नवी
वो तेरी इनायत की सज़ा याद है अब तक
सज्जाद बाक़र रिज़वी
पूछो मुझे ऐ हम-नफ़साँ कौन हूँ क्या हूँ
सज्जाद बाक़र रिज़वी
हमें चार सम्त की दौड़ में वही गर्द-ए-बाद-ए-सदा मिला
सज्जाद बाक़र रिज़वी
दिल ख़ूँ हुआ है शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना के साथ
सज्जाद बाक़र रिज़वी
अहद-ए-वफ़ा सुबुक-हवा रंग-ए-वफ़ा के साथ साथ
सज्जाद बाक़र रिज़वी
यूँ जुदा हुए मेरे दर्द-आश्ना मुझ से
सज्जाद बलूच
ज़ख़्मों को मिरे रंग हिना दे गई सबा
सैलानी सेवते
राह आसान हो गई होगी
सैफ़ुद्दीन सैफ़
कोई नहीं आता समझाने
सैफ़ुद्दीन सैफ़
छुप छुप के अब न देख वफ़ा के मक़ाम से
सैफ़ुद्दीन सैफ़
लहजे का रंग लफ़्ज़ की ख़ुश्बू भी देख ले
सैफ़ ज़ुल्फ़ी
ज़िंदगी हम से ख़फ़ा हो जैसे
साहिर होशियारपुरी
तुम ने कहा था चुप रहना सो चुप ने भी क्या काम किया
सहबा अख़्तर
इस तरीक़े को अदावत में रवा रखता हूँ मैं
सहबा अख़्तर
क्या किसी लम्हा-ए-रफ़्ता ने सताया है तुझे
सहर अंसारी
क्यूँ तू ने वा किया था बंद-ए-क़बा चमन में
सग़ीर अली मुरव्वत
वक़्त की उम्र क्या बड़ी होगी
साग़र सिद्दीक़ी
बात फूलों की सुना करते थे
साग़र सिद्दीक़ी
गेसू को तिरे रुख़ से बहम होने न देंगे
साग़र निज़ामी
जाना जाना जल्दी क्या है इन बातों को जाने दो
सफ़ी लखनवी
रस्तों पे न बैठो कि हवा तंग करेगी
सफ़दर सलीम सियाल
ये हादसा भी तो कुछ कम न था सबा के लिए
सईद अहमद अख़्तर
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