सबा Poetry (page 10)

जवाँ रुतों में लगाए हुए शजर अपने

रासिख़ इरफ़ानी

ख़याल की तरह चुप हो सदा हुए होते

राशिद आज़र

रात क्या सोच रहा था मैं भी

रसा चुग़ताई

मैं ने सोचा था इस अजनबी शहर में ज़िंदगी चलते-फिरते गुज़र जाएगी

रसा चुग़ताई

चराग़-ए-सुब्ह से शाम-ए-वतन की बात करो

रसा चुग़ताई

पी चुके थे ज़हर-ए-ग़म ख़स्ता-जाँ पड़े थे हम चैन था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

गुज़ारे तुम ने कैसे रोज़-ओ-शब हम से ख़फ़ा हो कर

राज कुमार सूरी नदीम

फ़ज़ा मलूल थी मैं ने फ़ज़ा से कुछ न कहा

रईस फ़रोग़

ये कर्बला है नज़्र-ए-बला हम हुए कि तुम

रईस अमरोहवी

माना कि तू सवार है और मैं पियादा हूँ

रईस अमरोहवी

दयार-ए-शाहिद-ए-बिल्क़ीस-अदा से आया हूँ

रईस अमरोहवी

गिरेबाँ का फ़ासला

राही मासूम रज़ा

रास्ते अपनी नज़र बदला किए

राही मासूम रज़ा

जिन से हम छूट गए अब वो जहाँ कैसे हैं

राही मासूम रज़ा

इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई

राही मासूम रज़ा

अजब है रंग-ए-चमन जा-ब-जा उदासी है

इरफ़ान सत्तार

पाबंद-ए-ग़म-ए-उल्फ़त ही रहे गो दर्द-ए-दहिंदाँ और सही

इरफ़ान अहमद मीर

ख़ाकिस्तर-ए-दिल में तो न था एक शरर भी

इक़बाल सुहैल

ये इत्र बे-ज़ियाँ नहीं नसीम-ए-नौ-बहार की

इक़बाल सुहैल

पैग़ाम-ए-रिहाई दिया हर चंद क़ज़ा ने

इक़बाल सुहैल

हर मोड़ नई इक उलझन है क़दमों का सँभलना मुश्किल है

इक़बाल सफ़ी पूरी

उस को नग़्मों में समेटूँ तो बुका जाने है

इक़बाल मतीन

टुकड़े टुकड़े मिरा दामान-ए-शकेबाई है

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

फिर तिरा ज़िक्र किया बाद-ए-सबा ने मुझ से

इक़बाल अशहर

कितने भूले हुए नग़्मात सुनाने आए

इक़बाल अशहर

सुब्ह-दम मुझ से लिपट कर वो नशे में बोले

इंशा अल्लाह ख़ान

ग़ुंचा-ए-गुल के सबा गोद भरी जाती है

इंशा अल्लाह ख़ान

वो जो शख़्स अपने ही ताड़ में सो छुपा है दिल ही की आड़ में

इंशा अल्लाह ख़ान

टुक आँख मिलाते ही किया काम हमारा

इंशा अल्लाह ख़ान

पकड़ी किसी से जावे नसीम और सबा बंधे

इंशा अल्लाह ख़ान

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