सबा Poetry (page 11)

न तो काम रखिए शिकार से न तो दिल लगाइए सैर से

इंशा अल्लाह ख़ान

क्या मिला हम को तेरी यारी में

इंशा अल्लाह ख़ान

क़ैद-ए-तन से रूह है नाशाद क्या

इम्दाद इमाम असर

हुस्न की जिंस ख़रीदार लिए फिरती है

इम्दाद इमाम असर

समझ रहे हैं मगर बोलने का यारा नहीं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कोई मुज़्दा न बशारत न दुआ चाहती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बे-सम्त रास्तों पे सदा ले गई मुझे

इफ़्फ़त ज़र्रीं

एक मुद्दत से सर-ए-दोश-ए-हवा हूँ मैं भी

इफ़्फ़त अब्बास

हम से शायद मो'तबर ठहरी सबा

इब्न-ए-मुफ़्ती

हम से मिलते थे सितारे आप के

इब्न-ए-मुफ़्ती

हमें तुम पे गुमान-ए-वहशत था हम लोगों को रुस्वा किया तुम ने

इब्न-ए-इंशा

राहत ओ रंज से जुदा हो कर

हुसैन आबिद

फ़रोग़-ए-दीदा-वरी का ज़माना आया है

हुरमतुल इकराम

दिल को ग़म रास है यूँ गुल को सबा हो जैसे

होश तिर्मिज़ी

मिलता नहीं मिज़ाज ख़ुद अपनी अदा में है

होश तिर्मिज़ी

दिल को ग़म रास है यूँ गुल को सबा हो जैसे

होश तिर्मिज़ी

आए थे तेरे शहर में कितनी लगन से हम

हिमायत अली शाएर

क़ल्ब को बर्फ़-आश्ना न करो

हज़ीं लुधियानवी

इस तरह पैकर-ए-वफ़ा हो जाएँ

हज़ीं लुधियानवी

करते हैं शौक़-ए-दीद में बातें हवा से हम

हातिम अली मेहर

गुलज़ार में फिर कोई गुल-ए-ताज़ा खिला क्या

हातिम अली मेहर

वो ज़ार हूँ कि सर पे गुलिस्ताँ उठा लिया

हातिम अली मेहर

पुतली की एवज़ हूँ बुत-ए-राना-ए-बनारस

हातिम अली मेहर

नाला-ए-गर्म के और दम सर्द भरे क्या जिएँ हम तो मरे

हातिम अली मेहर

करते हैं शौक़-ए-दीद में बातें हवा से हम

हातिम अली मेहर

का'बा-ओ-बुत-ख़ाना वालों से जुदा बैठे हैं हम

हातिम अली मेहर

दिल ले गई वो ज़ुल्फ़-ए-रसा काम कर गई

हातिम अली मेहर

बदन-ए-यार की बू-बास उड़ा लाए हवा

हातिम अली मेहर

बदन-ए-यार की बू-बास उड़ा लाए हवा

हातिम अली मेहर

यूँ तो आशिक़ तिरा ज़माना हुआ

हसरत मोहानी

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